मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। कल माघ पूर्णिमा का पर्व था। माघ का महीना विशेष रूप से नदियों, सरोवरों और जलस्त्रोतों से जुड़ा हुआ माना जाता है। हमारे शास्त्रों में कहा गया है :-
“माघे निमग्ना: सलिले सुशीते, विमुक्तपापा: त्रिदिवम् प्रयान्ति।|”
अर्थात, माघ महीने में किसी भी पवित्र जलाशय में स्नान को पवित्र माना जाता है। दुनिया के हर समाज में नदी के साथ जुड़ी हुई कोई-न-कोई परम्परा होती ही है। नदी तट पर अनेक सभ्यताएं भी विकसित हुई हैं। हमारी संस्कृति क्योंकि हजारों वर्ष पुरानी है, इसलिए, इसका विस्तार हमारे यहाँ और ज्यादा मिलता है। भारत में कोई ऐसा दिन नहीं होगा जब देश के किसी-न-किसी कोने में पानी से जुड़ा कोई उत्सव न हो। माघ के दिनों में तो लोग अपना घर-परिवार, सुख-सुविधा छोड़कर पूरे महीने नदियों के किनारे कल्पवास करने जाते हैं। इस बार हरिद्वार में कुंभ भी हो रहा है। जल हमारे लिये जीवन भी है, आस्था भी है और विकास की धारा भी है। पानी, एक तरह से पारस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। कहा जाता है पारस के स्पर्श से लोहा, सोने में परिवर्तित हो जाता है। वैसे ही पानी का स्पर्श, जीवन के लिये जरुरी है, विकास के लिये जरुरी है।
साथियो, माघ महीने को जल से जोड़ने का संभवतः एक और भी कारण है, इसके बाद से ही, सर्दियाँ खत्म हो जाती हैं, और, गर्मियों की दस्तक होने लगती है, इसलिए पानी के संरक्षण के लिये, हमें, अभी से ही प्रयास शुरू कर देने चाहिए। कुछ दिनों बाद मार्च महीने में ही 22 तारीख को ‘World Water Day’ भी है।
मुझे U.P. की आराध्या जी ने लिखा है कि दुनिया में करोड़ों लोग, अपने जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा पानी की कमी को पूरा करने में ही लगा देते हैं। ‘बिन पानी सब सून’, ऐसे ही नहीं कहा गया है। पानी के संकट को हल करने के लिये एक बहुत ही अच्छा message पश्चिम बंगाल के ‘उत्तर दीनाजपुर’ से सुजीत जी ने मुझे भेजा है। सुजीत जी ने लिखा है कि प्रकृति ने जल के रूप में हमें एक सामूहिक उपहार दिया है इसलिए इसे बचाने की जिम्मेदारी भी सामूहिक है। ये बात सही है जैसे सामूहिक उपहार है, वैसे ही सामूहिक उत्तरदायित्व भी है। सुजीत जी की बात बिलकुल सही है। नदी, तालाब, झील, वर्षा या जमीन का पानी, ये सब, हर किसी के लिये हैं।
साथियो, एक समय था जब गाँव में कुएं, पोखर, इनकी देखभाल, सब मिलकर करते थे, अब ऐसा ही एक प्रयास, तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में हो रहा है। यहाँ स्थानीय लोगों ने अपने कुओं को संरक्षित करने के लिये अभियान चलाया हुआ है। ये लोग अपने इलाके में वर्षों से बंद पड़े सार्वजनिक कुओं को फिर से जीवित कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के अगरोथा गाँव की बबीता राजपूत जी भी जो कर रही हैं, उससे आप सभी को प्रेरणा मिलेगी। बबीता जी का गाँव बुंदेलखंड में है। उनके गाँव के पास कभी एक बहुत बड़ी झील थी जो सूख गई थी। उन्होंने गाँव की ही दूसरी महिलाओं को साथ लिया और झील तक पानी ले जाने के लिये एक नहर बना दी। इस नहर से बारिश का पानी सीधे झील में जाने लगा। अब ये झील पानी से भरी रहती है।
साथियो, उत्तराखंड के बागेश्वर में रहने वाले जगदीश कुनियाल जी का काम भी बहुत कुछ सिखाता है। जगदीश जी का गाँव और आस-पास का क्षेत्र पानी की जरूरतों के लिये के एक प्राकृतिक स्रोत्र पर निर्भर था। लेकिन कई साल पहले ये स्त्रोत सूख गया। इससे पूरे इलाके में पानी का संकट गहराता चला गया। जगदीश जी ने इस संकट का हल वृक्षारोपण से करने की ठानी। उन्होंने पूरे इलाके में गाँव के लोगों के साथ मिलकर हजारों पेड़ लगाए और आज उनके इलाके का सूख चुका वो जलस्त्रोत फिर से भर गया है।
साथियो, पानी को लेकर हमें इसी तरह अपनी सामूहिक जिम्मेदारियों को समझना होगा। भारत के ज्यादातर हिस्सों में मई-जून में बारिश शुरू होती है। क्या हम अभी से अपने आसपास के जलस्त्रोतों की सफाई के लिये, वर्षा जल के संचयन के लिये, 100 दिन का कोई अभियान शुरू कर सकते हैं ? इसी सोच के साथ अब से कुछ दिन बाद जल शक्ति मंत्रालय द्वारा भी जल शक्ति अभियान – ‘Catch the Rain’ भी शुरू किया जा रहा है। इस अभियान का मूल मन्त्र है – ‘Catch the rain, where it falls, when it falls.’। हम अभी से जुटेंगे, हम पहले से जो rain water harvesting system है उन्हें दुरुस्त करवा लेंगे, गांवो में, तालाबों में, पोखरों की, सफाई करवा लेंगे, जलस्त्रोतों तक जा रहे, पानी के रास्ते की रुकावटें, दूर, कर लेंगे तो ज्यादा से ज्यादा वर्षा जल का संचयन कर पायेंगे।
मेरे प्यारे देशवासियो, जब भी माघ महीने और इसके आध्यात्मिक सामाजिक महत्त्व की चर्चा होती है तो ये चर्चा एक नाम के बिना पूरी नहीं होती। ये नाम है संत रविदास जी का। माघ पूर्णिमा के दिन ही संत रविदास जी की जयंती होती है। आज भी, संत रविदास जी के शब्द, उनका ज्ञान, हमारा पथप्रदर्शन करता है।
उन्होंने कहा था-
एकै माती के सभ भांडे,
सभ का एकौ सिरजनहार।
रविदास व्यापै एकै घट भीतर,
सभ कौ एकैघड़ै कुम्हार।|
हम सभी एक ही मिट्टी के बर्तन हैं, हम सभी को एक ने ही गढ़ा है। संत रविदास जी ने समाज में व्याप्त विकृतियों पर हमेशा खुलकर अपनी बात कही। उन्होंने इन विकृतियों को समाज के सामने रखा, उसे सुधारने की राह दिखाई और तभी तो मीरा जी ने कहा था –
‘गुरु मिलिया रैदास, दीन्हीं ज्ञान की गुटकी’।
ये मेरा सौभाग्य है कि मैं संत रविदास जी की जन्मस्थली वाराणसी से जुड़ा हुआ हूँ। संत रविदास जी के जीवन की आध्यात्मिक ऊंचाई को और उनकी ऊर्जा को मैंने उस तीर्थ स्थल में अनुभव किया है।
साथियो, रविदास जी कहते थे-
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।|
अर्थात् हमें निरंतर अपना कर्म करते रहना चाहिए, फिर फल तो मिलेगा ही मिलेगा, यानी, कर्म से सिद्धि तो होती ही होती है। हमारे युवाओं को एक और बात संत रविदास जी से जरुर सीखनी चाहिए। युवाओं को कोई भी काम करने के लिये, खुद को, पुराने तौर तरीकों में बांधना नहीं चाहिए। आप, अपने जीवन को खुद ही तय करिए। अपने तौर तरीके भी खुद बनाइए और अपने लक्ष्य भी खुद ही तय करिए। अगर आपका विवेक, आपका आत्मविश्वास मजबूत है तो आपको दुनिया में किसी भी चीज से डरने की जरुरत नहीं है। मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ क्योंकि कई बार हमारे युवा एक चली आ रही सोच के दबाव में वो काम नहीं कर पाते, जो करना वाकई उन्हें पसंद होता है। इसलिए आपको कभी भी नया सोचने, नया करने में, संकोच नहीं करना चाहिए। इसी तरह, संत रविदास जी ने एक और महत्वपूर्ण सन्देश दिया है। ये सन्देश है ‘अपने पैरों पर खड़ा होना’। हम अपने सपनों के लिये किसी दूसरे पर निर्भर रहें ये बिलकुल ठीक नहीं है। जो जैसा है वो वैसा चलता रहे, रविदास जी कभी भी इसके पक्ष में नहीं थे और आज हम देखते है कि देश का युवा भी इस सोच के पक्ष में बिलकुल नहीं है। आज जब मैं देश के युवाओं में innovative spirit देखता हूँ तो मुझे लगता है कि हमारे युवाओं पर संत रविदास जी को जरुर गर्व होता।
मेरे प्यारे देशवासियो, आज ‘National Science Day’ भी है। आज का दिन भारत के महान वैज्ञानिक, डॉक्टर सी.वी. रमन जी द्वारा की गई ‘Raman Effect’ खोज को समर्पित है। केरल से योगेश्वरन जी ने NamoApp पर लिखा है कि Raman Effect की खोज ने पूरी विज्ञान की दिशा को बदल दिया था। इससे जुड़ा हुआ एक बहुत अच्छा सन्देश मुझे नासिक के स्नेहिल जी ने भी भेजा है। स्न्नेहिल जी ने लिखा है कि हमारे देश के अनगिनत वैज्ञानिक हैं, जिनके योगदान के बिना साइंस इतनी प्रगति नहीं कर सकती थी। हम जैसे दुनिया के दूसरे वैज्ञानिकों के बारे में जानते हैं, वैसे ही, हमें, भारत के वैज्ञानिकों के बारे में भी जानना चाहिए। मैं भी ‘मन की बात’ के इन श्रोताओं की बात से सहमत हूँ। मैं जरुर चाहूँगा कि हमारे युवा, भारत के वैज्ञानिक – इतिहास को, हमारे वैज्ञानिकों को जाने, समझें और खूब पढ़ें।
साथियो, जब हम science की बात करते हैं तो कई बार इसे लोग physics-chemistry या फिर labs तक ही सीमित कर देते हैं, लेकिन, science का विस्तार तो इससे कहीं ज्यादा है और ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ में science की शक्ति का बहुत योगदान भी है। हमें science को Lab to Land के मंत्र के साथ आगे बढ़ाना होगा।
उदाहरण के तौर पर हैदराबाद के चिंतला वेंकट रेड्डी जी हैं। रेड्डी जी के एक डॉक्टर मित्र ने उन्हें एक बार ‘विटामिन-डी’ की कमी से होने वाली बीमारियाँ और इसके खतरों के बारे में बताया। रेड्डी जी किसान हैं, उन्होंने सोचा कि वो इस समस्या के समाधान के लिए क्या कर सकते हैं ? इसके बाद उन्होंने मेहनत की और गेहूं चावल की ऐसी प्रजातियों को विकसित की जो खासतौर पर ‘विटामिन-डी’ से युक्त हैं। इसी महीने उन्हें World Intellectual Property Organization, Geneva से patent भी मिली है। ये हमारी सरकार का सौभाग्य है कि वेंकट रेड्डी जी को पिछले साल पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।
ऐसे ही बहुत Innovative तरीके से लद्दाख के उरगेन फुत्सौग भी काम कर रहे हैं। उरगेन जी इतनी ऊंचाई पर Organic तरीके से खेती करके करीब 20 फसलें उगा रहे हैं वो भी cyclic तरीके से, यानी वो, एक फसल के waste को, दूसरी फसल में, खाद के तौर पर, इस्तेमाल कर लेते हैं। है न कमाल की बात।
इसी तरह गुजरात के पाटन जिले में कामराज भाई चौधरी ने घर में ही सहजन के अच्छे बीज विकसित किए हैं। सहजन को कुछ लोग सर्गवा बोलते हैं, इसे मोरिंगा या drum stick भी कहा जाता है। अच्छे बीजों की मदद से जो सहजन पैदा होता है, उसकी quality भी अच्छी होती है। अपनी उपज को वो अब तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल भेजकर, अपनी आय भी बढ़ा रहे हैं।
साथियो, आजकल Chia seeds (चिया सीड्स) का नाम आप लोग बहुत सुनते होंगे। Health awareness से जुड़े लोग इसे काफी महत्व देते हैं और दुनिया में इसकी बड़ी मांग भी है। भारत में इसे ज्यादातर बाहर से मगाते हैं, लेकिन अब, Chia seeds (चिया सीड्स) में आत्मनिर्भरता का बीड़ा भी लोग उठा रहे हैं। ऐसे ही यूपी के बाराबंकी में हरिश्चंद्र जी ने Chia seeds (चिया सीड्स) की खेती शुरू की है। Chia seeds (चिया सीड्स) की खेती उनकी आय भी बढ़ाएगी और आत्मनिर्भर भारत अभियान में भी मदद करेगी।
साथियो, Agriculture waste से wealth create करने के भी कई प्रयोग देशभर में सफलतापूर्वक चल रहे हैं। जैसे, मदुरै के मुरुगेसन जी ने केले के waste से रस्सी बनाने की एक मशीन बनाई है। मुरुगेसन जी के इस innovation से पर्यावरण और गंदगी का भी समाधान होगा, और किसानों के लिए अतिरिक्त आय का रास्ता भी बनेगा।
साथियो, ‘मन की बात’ के श्रोताओं को इतने सारे लोगों के बारे में बताने का मेरा मकसद यही है कि हम सभी इनसे प्रेरणा लें। जब देश का हर नागरिक अपने जीवन में विज्ञान का विस्तार करेगा, हर क्षेत्र में करेगा, तो प्रगति के रास्ते भी खुलेंगे और देश आत्मनिर्भर भी बनेगा। और मुझे विश्वास है, ये देश का हर नागरिक कर सकता है।
मेरे प्यारे साथियो, कोलकाता के रंजन जी ने अपने पत्र में बहुत ही दिलचस्प और बुनियादी सवाल पूछा है, और साथ ही, बेहतरीन तरीके से उसका जवाब भी देने की कोशिश की है। वे लिखते हैं कि जब हम आत्मनिर्भर होने की बात करते हैं, तो इसका हमारे लिए क्या अर्थ होता है ? इसी सवाल के जवाब में उन्होंने खुद ही आगे लिखा है कि – ‘‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ केवल एक Government policy नहीं है, बल्कि एक National spirit है। वो मानते हैं कि आत्मनिर्भर होने का अर्थ है कि अपनी किस्मत का फैसला खुद करना यानि स्वयं अपने भाग्य का नियंता होना। रंजन बाबू की बात सौ-टका सही है। उनकी बात को आगे बढ़ाते हुये मैं ये भी कहूँगा कि आत्मनिर्भरता की पहली शर्त होती है – अपने देश की चीजों पर गर्व होना, अपने देश के लोगों द्वारा बनाई वस्तुओं पर गर्व होना। जब प्रत्येक देशवासी गर्व करता है, प्रत्येक देशवासी जुड़ता है, तो आत्मनिर्भर भारत, सिर्फ एक आर्थिक अभियान न रहकर एक National spirit बन जाता है। जब आसमान में हम अपने देश में बने Fighter Plane Tejas को कलाबाजियाँ खाते देखते हैं, जब भारत में बने टैंक, भारत में बनी मिसाइलें, हमारा गौरव बढ़ाते हैं, जब समृद्ध देशों में हम Metro Train के Made in India coaches देखते हैं, जब दर्जनों देशों तक Made in India कोरोना वैक्सीन को पहुँचते हुए देखते हैं, तो हमारा माथा और ऊंचा हो जाता है। और ऐसा ही नहीं है कि बड़ी-बड़ी चीजें ही भारत को आत्मनिर्भर बनाएँगी। भारत में बने कपड़े, भारत के talented कारीगरों द्वारा बनाया गया Handicraft का समान, भारत के Electronic उपकरण, भारत के मोबाइल, हर क्षेत्र में, हमें, इस गौरव को बढ़ाना होगा। जब हम इसी सोच के साथ आगे बढ़ेंगे, तभी सही मायने में आत्मनिर्भर बन पाएंगे और साथियो, मुझे खुशी है कि आत्मनिर्भर भारत का ये मंत्र, देश के गाँव-गाँव में पहुँच रहा है। बिहार के बेतिया में यही हुआ है, जिसके बारे में मुझे मीडिया में पढ़ने को मिला।
बेतिया के रहने वाले प्रमोद जी, दिल्ली में एक Technician के रूप में LED Bulb बनाने वाली Factory में काम करते थे, उन्होंने इस factory में कार्य करने के दौरान पूरी प्रक्रिया को बहुत बारीकी से समझा । लेकिन कोरोना के दौरान प्रमोद जी को अपने घर वापस लौटना पड़ा। आप जानते हैं लौटने के बाद प्रमोद जी ने क्या किया ? उन्होंने खुद LED Bulb बनाने की एक छोटी-सी unit ही शुरू कर दी। उन्होंने अपने क्षेत्र के कुछ युवाओं को साथ लिया और कुछ ही महीनों में Factory worker से लेकर Factory owner बनने तक का सफर पूरा कर दिया। वह भी अपने ही घर में रहते हुये।
एक और उदाहरण है – यूपी के गढ़मुक्तेश्वर का। गढ़मुक्तेश्वर से श्रीमान संतोष जी ने लिखा है कि कैसे कोरोना काल में उन्होंने आपदा को अवसर में बदला। संतोष जी के पुरखे शानदार कारीगर थे, चटाई बनाने का काम करते थे। कोरोना के समय जब बाकी काम रुके तो इन लोगों ने बड़ी ऊर्जा और उत्साह के साथ चटाई बनाना शुरू किया। जल्द ही, उन्हें न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि दूसरे राज्यों से भी चटाई के order मिलने शुरू हो गए। संतोष जी ने यह भी बताया है इससे इस क्षेत्र की सैकड़ों साल पुरानी खूबसूरत कला को भी एक नई ताकत मिली है।
साथियो, देशभर में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां लोग, ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ में, इसी तरह, अपना योगदान दे रहे हैं। आज यह एक भाव बन चुका है, जो आम जनों के दिलों में प्रवाहित हो रहा है।
मेरे प्यारे देशवासियो, मैंने NaMoApp पर गुड़गाँव निवासी मयूर की एक Interesting post देखी। वे Passionate Bird Watcher और Nature Lover हैं। मयूर जी ने लिखा है कि मैं तो हरियाणा में रहता हूँ, लेकिन, मैं चाहता हूँ कि आप, असम के लोगों, और विशेष रूप से, Kaziranga के लोगों की चर्चा करें। मुझे लगा कि मयूर जी, Rhinos के बारे में बात करेंगे, जिन्हें वहाँ का गौरव कहा जाता है। लेकिन मयूर जी ने काजीरंगा में Waterfowls (वॉटर-फाउल्स) की संख्या में हुई बढ़ोतरी को लेकर असम के लोगों की सराहना के लिए कहा है। मैं ढूंढ रहा था कि हम Waterfowls को साधारण शब्दों में क्या कह सकते हैं, तो एक शब्द मिला – जलपक्षी। ऐसे पक्षी जिनका बसेरा, पेड़ों पर नहीं, पानी पर होता है, जैसे बतख वगैरह। Kaziranga National Park & Tiger Reserve Authority कुछ समय से Annual Waterfowls Census करती आ रही है। इस Census से जल पक्षियों की संख्या का पता चलता है और उनके पसंदीदा Habitat की जानकारी मिलती है। अभी दो-तीन सप्ताह पहले ही survey फिर हुआ है। आपको भी ये जानकार खुशी होगी कि इस बार जल-पक्षियों की संख्या, पिछले वर्ष की तुलना में करीब एक-सौ पिचहत्तर (175) प्रतिशत ज्यादा आई है। इस Census के दौरान काजीरंगा नेशनल पार्क में Birds की कुल 112 Species को देखा गया है। इनमें से 58 Species यूरोप, Central Asia और East Asia सहित दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आए Winter Migrants हैं। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि यहाँ बेहतर Water Conservation होने के साथ Human Interference बहुत कम है। वैसे कुछ मामलों में Positive Human Interference भी बहुत महत्वपूर्ण होता है।
असम के श्री जादव पायेन्ग को ही देख लीजिये। आप में से कुछ लोग उनके बारे में जरूर जानते होंगे। अपने कार्यों के लिए उन्हें पद्म सम्मान मिला है। श्री जादव पायेन्ग वो शख्स हैं जिन्होंने असम में मजूली आइलैंड में करीब 300 हेक्टेयर Plantation में अपना सक्रिय योगदान दिया है। वे वन संरक्षण के लिए काम करते रहे हैं और लोगों को Plantation एवं Biodiversity के Conservation को लेकर प्रेरित करने में भी जुटे हुए हैं।
साथियो, असम में हमारे मंदिर भी, प्रकृति के संरक्षण में, अपनी अलग ही भूमिका निभा रहे हैं, यदि आप, हमारे मंदिरों को देखेंगे, तो पाएंगे कि हर मंदिर के पास तालाब होता है। हजो स्थित हयाग्रीव मधेब मंदिर, सोनितपुर के नागशंकर मंदिर और गुवाहाटी में स्थित उग्रतारा Temple के पास इस प्रकार के कई तालाब हैं। इनका उपयोग विलुप्त होते कछुओं की प्रजातियों को बचाने के लिए किया जा रहा है। असम में कछुओं की सबसे अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। मंदिरों के ये तालाब कछुओं के संरक्षण, प्रजनन और उनके बारे में प्रशिक्षण के लिए एक बेहतरीन स्थल बन सकते हैं।
मेरे प्यारे देशवासियो, कुछ लोग समझते हैं कि Innovation करने के लिए आपका Scientist होना जरूरी है, कुछ सोचते हैं कि दूसरों को कुछ सिखाने के लिए आपका Teacher होना जरूरी है। इस सोच को चुनौती देने वाले व्यक्ति हमेशा सराहनीय होते हैं। अब जैसे, क्या कोई, किसी को, Soldier बनने के लिए प्रशिक्षित करता है, तो क्या उसको सैनिक होना जरूरी है ? आप सोच रहे होंगे कि हाँ, जरुरी है। लेकिन यहाँ थोड़ा-सा Twist है।
MyGov पर कमलकांत जी ने मीडिया की एक रिपोर्ट साझा की है, जो कुछ अलग बात कहती है। ओडिशा में अराखुड़ा में एक सज्जन हैं – नायक सर। वैसे तो इनका नाम सिलू नायक है, पर सब उन्हें नायक सर ही बुलाते हैं। दरअसल वे Man on a Mission हैं। वह उन युवाओं को मुफ्त में प्रशिक्षित करते हैं, जो सेना में शामिल होना चाहते हैं। नायक सर के Organization का नाम महागुरु Battalion है। इसमें Physical Fitness से लेकर Interviews तक और Writing से लेकर Training तक, इन सभी पहलुओं के बारे में बताया जाता है। आपको यह जानकार हैरानी होगी कि उन्होंने जिन लोगों को प्रशिक्षण दिया है, उन्होंने थल सेना, जल सेना, वायु सेना, CRPF, BSF ऐसे uniform forces में अपनी जगह बनाई है। वैसे आप ये जानकर भी आश्चर्य से भर जाएंगे कि सिलू नायक जी ने खुद ओडिशा पुलिस में भर्ती होने के लिए प्रयास किया था, लेकिन वो सफल नहीं हो पाए, इसके बावजूद, उन्होंने अपने प्रशिक्षण के दम पर अनेक युवाओं को राष्ट्र सेवा के योग्य बनाया है। आइए, हम सब मिलकर नायक सर को शुभकामना दें कि वह हमारे देश के लिए और अधिक नायकों को तैयार करें।
साथियो, कभी-कभी बहुत छोटा और साधारण सा सवाल भी मन को झकझोर जाता है। ये सवाल लंबे नहीं होते हैं, बहुत simple होते हैं, फिर भी वे हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं। कुछ दिन पहले हैदराबाद की अपर्णा रेड्डी जी ने मुझसे ऐसा ही एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि – आप इतने साल से पी.एम. हैं, इतने साल सी.एम. रहे, क्या आपको कभी लगता है कि कुछ कमी रह गई। अपर्णा जी का सवाल बहुत सहज है लेकिन उतना ही मुश्किल भी। मैंने इस सवाल पर विचार किया और खुद से कहा मेरी एक कमी ये रही कि मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा – तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया, मैं तमिल नहीं सीख पाया। यह एक ऐसी सुंदर भाषा है, जो दुनिया भर में लोकप्रिय है। बहुत से लोगों ने मुझे तमिल literature की quality और इसमें लिखी गई कविताओं की गहराई के बारे में बहुत कुछ बताया है। भारत ऐसी अनेक भाषाओँ की स्थली है, जो हमारी संस्कृति और गौरव का प्रतीक है। भाषा के बारे में बाते करते हुए, मैं एक छोटी सी interesting clip आप सबके साथ साझा करना चाहता हूँ।
## (sound clip Statue of Unity)
दरअसल अभी जो आप सुन रहे थे, वो statue of unity पर एक Guide, संस्कृत में लोगों को सरदार पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा के बारे में बता रही हैं। आपको जानकर खुशी होगी कि केवड़िया में 15 से ज्यादा Guide, धारा प्रवाह संस्कृत में लोगों को गाइड करते हैं। अब मैं आपको एक और आवाज सुनवाता हूं –
## (sound clip Cricket commentary)
आप भी इसे सुनकर हैरान हो गए होंगे ! दरअसल, यह संस्कृत में की जा रही cricket commentary है। वाराणसी में, संस्कृत महाविद्यालयों के बीच एक cricket tournament होता है। ये महाविद्यालय हैं – शास्त्रार्थ महाविद्यालय, स्वामी वेदांती वेद विद्यापीठ, श्री ब्रह्म वेद विद्यालय और इंटरनेशनल चंद्रमौली चैरिटेबल ट्रस्ट। इस tournament के मैचों के दौरान commentary संस्कृत में भी की जाती है। अभी मैंने उस commentary का एक बहुत ही छोटा-सा हिस्सा आपको सुनाया। यही नहीं, इस tournament में, खिलाड़ी और commentator पारंपरिक परिधान में नजर आते हैं। यदि आपको energy, excitement, suspense सब कुछ एक साथ चाहिए तो आपको खेलों की commentary सुननी चाहिए। टी.वी. आने से बहुत पहले, sports commentary ही वो माध्यम थी, जिसके जरिए cricket और hockey जैसे खेलों का रोमांच देशभर के लोग महसूस करते थे। Tennis और football मैचों की commentary भी बहुत अच्छी तरह से पेश की जाती है। हमने देखा है कि जिन खेलों में commentary समृद्ध है, उनका प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से होता है। हमारे यहां भी बहुत से भारतीय खेल हैं लेकिन उनमें commentary culture नहीं आया है और इस वजह से वो लुप्त होने की स्थिति में हैं। मेरे मन में एक विचार है – क्यों न, अलग-अलग sports और विशेषकर भारतीय खेलों की अच्छी commentary अधिक से अधिक भाषाओं में हो, हमें इसे प्रोत्साहित करने के बारे में जरूर सोचना चाहिए। मैं खेल मंत्रालय और private संस्थान के सहयोगियों से इस बारे में सोचने का आग्रह करूंगा।
मेरे प्यारे युवा साथियो, आने वाले कुछ महीने आप सब के जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। अधिकतर युवा साथियों के exams, परिक्षाए होंगी। आप सब को याद है ना – Warrior बनना है worrier नहीं, हँसते हुए exam देने जाना है और मुस्कुराते हुए लौटना है । किसी और से नहीं, अपने आप से ही स्पर्धा करनी है। पर्याप्त नींद भी लेनी है, और time management भी करना है। खेलना भी नहीं छोड़ना है, क्योंकि जो खेले वो खिले। Revision और याद करने के smart तरीक़े अपनाने हैं, यानी, कुल मिलाकर इन exams में, अपने best को, बाहर लाना है । आप सोच रहे होंगे यह सब होगा कैसे। हम सब मिलकर यह करने वाले है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम सब करेंगे ‘परीक्षा पे चर्चा’। लेकिन मार्च में होने वाली ‘परीक्षा पे चर्चा’ से पहले मेरी आप सभी exam warriors से, parents से, और teachers से, request है कि अपने अनुभव, अपने tips ज़रूर share करें। आप MyGov पर share कर सकते हैं। NarendraModi App पर share कर सकते हैं। इस बार की ‘परीक्षा पे चर्चा’ में युवाओं के साथ-साथ, parents और teachers भी आमंत्रित है। कैसे participate करना है, कैसे prize जीतने है, कैसे मेरे साथ discussion का अवसर पाना है यह सारी जानकारियाँ आपको MyGov पर मिलेंगी। अब तक एक लाख से अधिक विद्यार्थी, करीब 40 हजार parents, और तकरीबन, 10 हजार teacher भाग ले चुके हैं। आप भी आज ही participate कीजिये। इस कोरोना के समय में, मैंने, कुछ समय निकालकर exam warrior book में भी कई नए मंत्र जोड़ दिए हैं, अब इसमें parents के लिए भी कुछ मंत्र add किये गए हैं। इन मंत्रों से जुड़ी ढ़ेर सारी interesting activities NarendraModi App पर दी हुई है जो आपके अंदर के exam warrior को ignite करने में मदद करेंगी। आप इनको ज़रूर try करके देखिए। सभी युवा साथियों को आने वाली परीक्षाओं के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
मेरे प्यारे देशवासियो, मार्च का महीना हमारे financial year का आखिरी महीना भी होता है, इसलिए, आप में से बहुत से लोगों के लिए काफी व्यस्तता भी रहेगी। अब जिस तरह से देश में आर्थिक गतिविधियां तेज हो रही हैं उससे हमारे व्यापारी और उद्यमी साथियों की व्यस्तता भी बहुत बढ़ रही है। इन सारे कार्यों के बीच हमें कोरोना से सावधानी कम नहीं करनी है। आप सब स्वस्थ रहेंगे, खुश रहेंगे, कर्त्तव्य पथ पर डटे रहेंगे, तो देश तेजी से आगे बढ़ता रहेगा।
आप सभी को त्योहारों की अग्रिम शुभकामनायें, साथ-साथ कोरोना के सम्बन्ध में जो भी नियमों का पालन करना उसमें कोई ढिलाई नहीं आनी चाहिये। बहुत-बहुत धन्यवाद
My dear countrymen, Namaskar. Yesterday was the festival of Magh Poornima. The month of Magh is regarded related especially to rivers, lakes and water sources. It has been mentioned in our scriptures: MAGHE NIMAGNAAHA SALILE SUSHITE, VIMUKTAPAAPAAHA TRIDIVAM PRAYAANTI – meaning, in the month of Magh, a bath in any holy water body is considered sacred. In every society of the world, invariably, there is one tradition or the other with respect to a river. Many civilizations have evolved along the banks of rivers. Since our culture is thousands of years old, the spread of this phenomenon is more evident here. There must not be a single day in India, when there is no festival connected with water in some corner of the country or the other. During the period of Magh, people even leave their homes, near and dear ones, comforts and amenities to perform KALPVAAS on the banks of rivers. This time, in Haridwar, KUMBH too is being held. For us, water is life; faith too and the flow of development as well. In a way, water is more important than PARAS, the philosopher’s stone. It is said that with the touch of a PARAS, iron gets turned into gold. Similarly, the touch of water is necessary for life; imperative for development.
Friends, possibly there is another reason to associate the month of Magh with water – after this, winters come to an end and summers start knocking. Hence, for the conservation of water, we should begin efforts right away. A few days later, just on the 22nd of the month of March, it’s World Water Day.
Aaradhya from U.P. has written to me that millions of people in the world spend a major part of their lives in overcoming water shortage. It has not been said without reason, ‘BIN PAANI SAB SOON’ – without water, everything comes to a naught! In order to solve the water crisis, Sujit ji of North Dinajpur has sent me a very nice message. Sujit ji has written that Nature has bestowed upon us a collective gift in the form of Water; hence the responsibility of saving it is also collective. It is correct that just as there is a collective gift, there is a collective accountability too. Sujit ji’s thought is absolutely correct. River, lake, pond or ground water – all of these are for everyone.
Friends, there was a time when in villages, people would collectively look after wells and ponds. Now one such effort is underway at Thiruvannamalai, Tamilnadu. Here, local people have been running a campaign for the conservation of their wells. These people are rejuvenating public wells in their vicinity that had been lying unused for years.
The endeavour of Babita Rajput ji of village Agrotha in Madhya Pradesh will inspire all of you. Babita ji’s village is in Bundelkhand. Close to her village, once there was a very large lake which had dried up. She mobilized other women of the village itself and built a canal to bring water to the lake. Through this canal, rainwater started flowing directly into the lake. Now this lake remains filled with water.
Friends, the work of Jagdish Kuniyal ji, resident of Bageshwar, Uttarakhand also teaches us a lot. Jagdish ji’s village and the adjoining area were dependent on a natural source for their water requirements. But many years ago, the source dried up. This led to worsening of the water crisis in the entire area. Jagdish ji decided to solve the crisis through tree plantation. Along with fellow villagers, he planted thousands of trees over the entire area…and today, the dried up water source at the place is filled to the brim once again.
Friends, similarly, we shall have to understand our collective responsibilities with regard to water. In most parts of India, rainfall begins in May-June. Can we right away start a 100 day campaign for the sake of cleaning up water sources around us and conserving rainwater? With this very thought in mind, in a few days from now, Jal Shakti Abhiyan CATCH THE RAIN is being initiated by the Jal Shakti Ministry. Its credo is ‘CATCH THE RAIN, WHERE IT FALLS, WHEN IT FALLS’. We shall commit ourselves to the task right now…we shall get existing rain water harvesting systems repaired, clean up lakes and ponds in villages, remove impediments in the way of water flowing into water sources; thus we shall be able to conserve rainwater to the maximum.
My dear countrymen, whenever a discussion on the month of Magh and its spiritual-social significance takes place, the discourse is never complete without one name – the name is that of Sant Ravidas ji. Sant Ravidas ji’s birth anniversary falls on the very day of Magh Poornima. Even today, the words, the knowledge of Sant Ravidas ji guide us on our path. He’d said:
EKAI MAATI KE SABH BHAANDE, SABH KA EKAU SIRJANHAAR | RAVIDAS VYAAPAI EKAI GHAT BHEETAR, SABH KAU EKAY GHADAI KUMHAR ||
All of us are earthen vessels of one clay; all of us have been coiled and shaped by the One. Sant Ravidas ji always expressed himself openly on the social ills that had pervaded society. He laid bare social evils in front of society, showed the path of redemption; and that’s why Meera ji had said, ‘GURU MILIYA RAIDAS, DEENHI GYAAN KI GUTKI’ |
It’s my good fortune that I am connected with Varanasi, the birth place of Sant Ravidas ji. I have experienced the spiritual loftiness of Sant Ravidas ji’s life and his energy at the pilgrimage site. Friends, Ravidas ji used to say
‘KARAM BANDHAN MEIN BANDH RAHIYO, PHAL KI NA TAJJIYO AAS | KARMA MAANUSH KA DHARMA HAI, SAT BHAAKHAI RAVIDAS ||
Meaning, we should incessantly strive with our Karma, our work; the Phal, the reward is bound to come your way. This means – Karma leads to Siddhi, attainment with certitude. Our youth must learn one more thing from Sant Ravidas ji. For doing any work, they should not bind themselves to old methods and practices. Decide and shape your life yourself. Devise your own methods and practices, set your goals yourselves. If your conscience and self confidence is unshakeable, you need not fear anything in the world.
I say so since often due to pressures of traditional thinking our youth are not able to do what they really like. That is why you should never hesitate in thinking new, doing new. In the same manner Sant Ravidas ji has given another important message. This message is ‘to stand on one’s own feet’. It is not fair at all that we remain dependant on others for our dreams. Things remaining to continue the way they are… Ravidas ji was never in favour of this. Today, we see that the youth of the country too is not at all in favour of this thinking. Today when I see the innovative spirit of the youth of the country, I feel Ravidas ji too would have definitely felt proud of our youth.
My dear countrymen, today happens to be the ‘National Science Day’ too. The day is dedicated to the discovery of ‘Raman Effect’ by the great scientist of India, Dr C. V. Raman. Yogeshwaran ji from Kerala has written on NamoApp that the discovery of Raman Effect had changed the direction of science in its entirety. Snehil ji from Nasik too has sent me a very good message connected with this. Snehil ji has written that there are many scientists from our country without whose contribution science would not have progressed as much. The way we know of other scientists of the world, in the same way we should also know about the scientists of India. I too agree with this view of these listeners of ‘Mann Ki Baat’. I definitely would want that our youth know, understand and read a lot about the history of science of India ; about our scientists as well.
Friends, when we talk of science then many a time people restrict it to physics-chemistry or labs, but the spread of science is much more than that. And there is a lot of contribution of the power of science in the ‘Atmanirbhar Bharat Campaign’. We have to move science forward with the mantra of ‘Lab to Land’.
Chintala Venkat Reddy ji from Hyderabad is an example. A doctor friend of Reddy ji once told him about the diseases caused by deficiency of vitamin D and the dangers thereof. Reddy ji is a farmer, he thought about what he could do about solving this problem. After this he worked a lot and developed breeds of wheat and rice that specially contained vitamin D. This month itself he has received patent from World Intellectual Property Organization, Geneva. Our Government is fortunate that Venkat Reddy was also honoured with the Padmashree last year.
Similarly, Urugen Futsog of Ladakh too is working very innovatively. At those heights Urugen is growing about 20 crops organically, that too in a cyclic way, that is, he utilises the waste of one crop as manure for the other crop. Isnt’ it amazing?
In the same way Kamraj Bhai Choudhary from Patan district in Gujarat has developed good seeds of drum stick at home itself. Some people call drum stick as Sargava or Moringa. Drum sticks that are grown with the help of good seeds are of good quality too. Now by sending his produce to Tamil Nadu and West Bengal he is raising his income also.
Friends, nowadays you must be hearing a lot, the name of Chia seeds. People connected to health awareness give a lot of importance to it and it has a lot of demand too in the world. In India, it is mostly sourced from abroad but now people are taking up the challenge to be self-reliant in Chia seeds too. Similarly, Harishchandra ji of Barabanki in UP has begun farming of Chia seeds. Cultivation of Chia seeds will also increase his income and will help in the self-reliant India campaign too.
Friends, many experiments of creating wealth from agricultural waste too are being run successfully in the entire country. Like, Murugesan ji from Madurai made a machine to make ropes from waste of banana. This innovation of Murugesan ji will solve the issues of environment and filth too, and will also pave the way for additional income for the farmers.
Friends, the purpose of talking about so many people to the listeners of ‘Mann Ki Baat’ is that we all should get motivated by them. When every citizen of the country will spread the spirit of science in his life and in every field, avenues of progress will also open up and the country will become self-reliant too. And I do believe that every citizen of the country can do this.
My dear friends, Ranjan ji from Kolkata, in his letter, has raised a very interesting and fundamental question and along with that, has tried to answer it in the best way. He asks what it means to us when we talk of becoming self-reliant. In answer to this very question, he himself further writes that- “’Self reliant India” is not just a Government policy, but is a national spirit. He believes that being self-reliant means deciding one’s own fate, that is controlling one’s own destiny. Ranjan babu is a hundred percent correct. Furthering what he has said, I too would say that the first condition for self-reliance is to have pride in the things of one’s own country; to take pride in the things made by people of one’s own country. When every countryman takes pride, every countryman connects; self-reliant India doesn’t remain just an economic campaign but becomes a national spirit. When we see fighter plane Tejas made in our own country doing acrobatics in the sky, when Made in India tanks, Made in India missiles increase our pride, when we see Made in India coaches in Metro trains in wealthy-advanced nations, when we see Made in India Corona Vaccines reaching dozens of countries, then our heads rise higher. And it is not that only bigger things will make India self-reliant. Textiles made in India, handicraft goods made by talented artisans of India, electronic appliances of India, mobiles of India, in every field we have to raise this pride. When we move forward with this thought, only then will we become self-reliant in the truest sense… and friends, I am happy that this mantra of self-reliant India is reaching the villages of the country. This very thing happened in Bettiah, about which I got to read in the media.
A resident of Bettiah, Pramod ji worked as a technician in an LED bulb manufacturing factory in Delhi. During his work in the factory, he understood the intricacies of the entire process in great detail. But during corona Pramod ji had to return to his home. Do you know what Pramod ji did after returning? He himself started a small unit to manufacture LED bulbs. He brought along some youngsters from his area and completed the journey from being a factory worker to becoming a factory owner in a few months ; that too while living in his own house.
There is one more example from Garhmukteshwar in UP. Shriman Santosh Ji from Garhmukteshwar, has written how during the Corona outbreak he turned adversity into opportunity. Santosh ji’s ancestors were craftsmen par excellence ; they used to make mats. When everything came to a halt at the time of Corona, these people began mat making with great energy and enthusiasm. Soon, they started getting orders for their mats not only from Uttar Pradesh, but also from other states. Santosh ji also narrated that with this the hundreds of years old beautiful art of this region has received a new strength.
Friends, there are many examples across the country where people are contributing in a similar manner to the ‘Atmanirbhar Bharat Abhiyan’. Today it has become a sentiment, flowing in the hearts of common folk.
My dear countrymen, I saw an interesting post by Mayur, a resident of Gurgaon, on the NaMo App. He is a passionate bird watcher and a nature lover. Mayur ji has written that while he lives in Haryana, he wishes us to touch upon the people of Assam, and in particular, the people of Kaziranga. I thought that Mayur ji would talk about the Rhino, hailed as the pride of Kaziranga. But Mayur ji instead has asked for appreciation of the people of Assam for the rise in the number of Waterfowls in Kaziranga. I was searching for a common term to describe Waterfowls in simple terminology, and found the word – Jalpakshi – Birds that nest not on the trees but on the water, such as ducks and others.
The Kaziranga National Park & Tiger Reserve Authority has been carrying out its Annual Waterfowls Census for some time. This Census reveals the population of water birds and also about their favorite Habitat. Just two-three weeks ago, the survey was conducted again. You will also be delighted to know that this time the number of water birds has increased by about one hundred seventy five (175%) percent compared to last year. A total of 112 Species of Birds have been sighted in Kaziranga National Park during this Census. And of these, 58 species happen to be winter migrants from different parts of the world including Europe, Central Asia and East Asia. The most important reason for this is that here, there is better water conservation along with very little human interference. However, in some cases, positive human interference is also very important.
Just take the example of Shri Jadav Payeng of Assam with whom some of you certainly must be familiar. He has received the Padma award for his work. Shri Jadav Payeng is the person who actively contributed in raising about 300 hectares of plantations in the Majuli Island in Assam. He has been constantly working for forest conservation and is also involved in motivating people for Plantation and conservation of biodiversity.
Friends, our temples in Assam are also playing a unique role in the protection of nature. If you take a look at our temples, you will find that every temple has a pond in the vicinity. The Hayagriva Madheb Temple at Hajo, the Nagashankar Temple at Sonitpur and the Ugratara Temple at Guwahati have many such ponds nearby. They are being used to save near extinct species of turtles. Assam is home to the highest number of species of turtles. The ponds of theses temples can become excellent sites for their conservation and breeding and training about them.
My dear countrymen, some people think that it is necessary to be a scientist to do innovation and some believe that it is essential to be a teacher to teach something to others. Those who challenge this line of thinking are worthy of praise. Now for example if anyone trains someone to become a soldier, is it necessary for him to be a soldier? You may be thinking that yes, it is necessary. But here is a little twist!
On MyGov app, Kamalakant ji has shared a media report which states something different. There is a gentleman in Arakhuda in Odisha – Nayak Sir. Although his name is Silu Nayak, everyone addresses him as Nayak Sir. In reality he is a man on a mission! He imparts free training to the youth who want to join the army. The name of the organization of Nayak Sir is Mahaguru Battalion. The training touches upon all the aspects from physical fitness to interviews and writing to training. You will be surprised to know that the people this organization has trained, have secured their places in uniformed forces such as the Army, Navy, Air Force, CRPF and BSF.
By the way, you will also be amazed to know that Silu Nayak ji had himself tried to get recruited in Odisha Police but could not succeed. Despite this, on the basis of his own training, he has made many youth worthy of national service. Come, let us all wish Nayak Sir greater success for preparing more heroes for our country.
Friends, sometimes even a very small and simple question rankles the mind. These questions are not very long ; they are very simple, yet they make us think. A few days ago Aparna Reddy ji of Hyderabad asked me one such question. She said “You have been PM for so many years and were CM for so many years. Do you ever feel that something is missing?” Aparna ji’s question seems simple but is equally difficult. I pondered this over and told myself that one of my shortcomings was that I could not make much effort to learn Tamil, the oldest language in the world ; I could not make myself learn Tamil! It is such a beautiful language, which is popular all over the world. Many people have told me a lot about the quality of Tamil literature and the depth of the poems written in it. India is a land of many languages, which symbolizes our culture and pride. Speaking of language, I want to share a small, interesting clip with you.
(SOUND CLIP STATUE OF UNITY)
Actually, what you were listening to now is a guide at the Statue of Unity, informing people in Sanskrit about the tallest statue of Sardar Patel in the world. You will be happy to know that there are more than 15 guides in Kevadiya, who guide people in fluent Sanskrit. Now I present to you one more voice –
(SOUND CLIP CRICKET COMMENTARY)
You too would have been surprised to hear this. Actually, this is a cricket commentary being done in Sanskrit. In Varanasi, a cricket tournament is held among Sanskrit colleges. These colleges are – Shastharth College, Swami Vedanti Ved Vidyapeeth, Sri Brahma Veda Vidyalaya and International Chandramouli Charitable Trust. Commentary is also done in Sanskrit during the matches of this tournament. I just played for you a very small part of that commentary. Not only this, in this tournament, players and commentators are seen in the traditional attire. If you want energy, excitement, suspense all at once, then you should listen to the sports commentaries. Long before the advent of TV, sports commentary was the medium through which people of the country felt the thrill of sports like cricket and hockey. The commentary for tennis and football matches is also very well presented. We have seen that games in which commentaries are vibrant, they get promoted and gain popularity very fast. Here too, we have many Indian sports, where commentary culture has not permeated yet and due to this they are in a state of near extinction. I have a thought – Why not have good commentaries of different sports and especially Indian sports in more and more languages, we must think about encouraging it. I would urge the Sports Ministry and private institutional partners to think about it.
My dear young friends, the coming few months are of special importance in the lives of all of you. Most of the young friends will have exams. Do all of you remember – You have to become a warrior not a worrier, go gleefully for the examination and come back with a smile. You have to compete with yourself, not with anyone else. Get adequate sleep and be mindful of time management. Do not stop playing, for those who play are the ones that blossom. Revision and smart methods of memorization are to be adopted, that is, overall, in these exams, you have to bring out your best. You must be thinking how all this will be possible. We’re going to do it together. Like every year, this year too we will have ‘Pariksha Pe Charcha’. But before the ‘Pariksha Pe Charcha’ to be held in March, I request all of you exam warriors, parents and teachers to share your experiences, your tips. You can share on MyGov platform and Narendra Modi app. This time, along with the youth, parents and teachers are also invited to ‘Pariksha Pe Charcha’. You will get all the information on MyGov – how to participate, how to win the prize, how to get an opportunity to discuss with me. So far, more than one lakh students, about 40 thousand parents, and about 10 thousand teachers have participated. You too participate today itself. In the times of Corona, I took out some time, added many new mantras in the exam warrior book; some for the parents as well. A lot of interesting activities related to these mantras are given on the Narendra Modi App which will help to ignite the exam warrior in you. Do try them. Best wishes to all my young friends for the upcoming exams.
My dear countrymen, the month of March is also the last month of our financial year, therefore, it will be a very busy period for many of you. The way economic activities are intensifying in the country, the activities of our business and entrepreneur friends are also increasing. In the midst of all these, we should not lower our guard against Corona. May all of you be healthy, be happy, stay steadfast on the path of duty and service and the country will continue to move ahead fast. Best wishes in advance to all of you for the festivals; there should not be any laxity in the rules regarding Corona as well.
–டாக்டர்.துரைபெஞ்சமின்
Editor and Publisher
UTL MEDIA TEAM
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